दैनिक सांध्य प्रकाश
योग, अध्यात्म और मानव जीवन पर समग्र प्रभाव
चंद्रमा और मानव जीवन का अद्भुत संबंध है। आदिकाल से ही मनुष्य ने आकाशीय पिंडों के साथ गहरा संबंध अनुभव किया है। सूर्य जहाँ जीवन की ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत माना जाता है, वहीं चंद्रमा को शीतलता, शांति, भावनाओं और मन का स्वामी कहा गया है। भारतीय परंपरा में चंद्रमा केवल एक खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि जीवन-रस का स्रोत और मानसिक संतुलन का प्रतीक है।
यही कारण है कि जब चंद्रमा पर कोई असाधारण घटना घटती है –
जैसे कुल चंद्र ग्रहण – तो उसका प्रभाव केवल आकाश तक सीमित नहीं रहता, बल्कि मानव जीवन, प्रकृति, साधना, धर्म और समाज तक फैलता है। विशेषकर जब यह ग्रहण क्चद्यशशस्र रूशशठ्ठ का रूप ले लेता है, तो उसकी रहस्यमयता और भी गहरी हो जाती है।
कुल चंद्र ग्रहण क्या है? (खगोलशास्त्रीय दृष्टि से) चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक पहुँचने से रोक देती है। आंशिक चंद्र ग्रहण में केवल चंद्रमा का एक भाग छाया में होता है। आंशिक छाया ग्रहण में हल्का धुंधलापन दिखाई देता है। परंतु कुल चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की गहन छाया में आ जाता है।
कुल ग्रहण के दौरान सूर्य का प्रकाश सीधे चंद्रमा तक नहीं पहुँचता, बल्कि पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरता है। वायुमंडल में नीली और हरी किरणें छितरा जाती हैं जबकि लाल किरणें मुड़कर चंद्रमा पर पड़ती हैं। यही कारण है कि उस समय चंद्रमा लाल या ताम्रवर्णी दिखाई देता है, जिसे कहा जाता है।
रहस्य और प्रतीकात्मकता –
रक्तिम चंद्रमा का दर्शन सदैव रहस्य और रोमांच से भरा रहा है। भारतीय दृष्टि से यह काल आत्मशुद्धि और साधना का प्रतीक है। पश्चिमी मान्यताओं में कभी भविष्यवाणियों या बड़े सामाजिक परिवर्तन का द्योतक माना जाता है। योग और अध्यात्म की दृष्टि से यह भीतर झाँकने और अंतर्यात्रा करने का समय है। चंद्रमा मन का प्रतीक है। जब वह लालिमा लिए दिखाई देता है, तो यह अवचेतन भावनाओं और संस्कारों के उभरने का संकेत माना जाता है। यह समय साधक को अपने भीतर की दबी हुई प्रवृत्तियों को देखने और रूपांतरित करने का अवसर देता है।
प्राचीन भारतीय शास्त्रों एवं धर्मग्रंथों में चंद्र ग्रहण –
भारतीय शास्त्रों में ग्रहण को केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि दैवीय और दैत्य शक्तियों के संघर्ष का परिणाम बताया गया है।पौराणिक कथा के अनुसार राहु – केतु ने अमृत पान किया था, और जब भगवान विष्णु ने उन्हें पकड़कर सिर काटा, तो वे छाया ग्रह बन गए। जब-जब सूर्य या चंद्रमा इनके पास आते हैं, वे उन्हें ग्रस लेते हैं – यही ग्रहण है। मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों में ग्रहणकाल को पवित्र माना गया है। इस समय स्नान, जप, दान, उपवास आदि का विशेष महत्व बताया गया है। महाभारत और रामायण में भी ग्रहण का उल्लेख आता है। शास्त्रों के अनुसार ग्रहण का समय मंत्र-साधना, तप और उपासना के लिए अत्यंत फलदायी होता है, क्योंकि उस समय प्रकृति की सूक्ष्म ऊर्जा प्रवाहमान रहती है।
चंद्र ग्रहण का योग व साधना पर प्रभाव –
योगशास्त्र चंद्रमा को मन और इड़ा नाड़ी का स्वामी मानता है। चंद्र ग्रहण के समय – मन की तरंगों में असामान्य उतार-चढ़ाव आते हैं। साधना से मन को गहराई में ले जाना आसान हो जाता है। प्राण ऊर्जा का प्रवाह विशेष रूप से प्रभावित होता है। ध्यान, मंत्र-जप, प्राणायाम और मौन साधना इस समय कई गुना फल देती है।योगियों के लिए यह समय आत्मशक्ति जागरण और सुषुप्त ऊर्जा के प्रकट होने का अवसर है।
ग्रहण काल की धार्मिक परंपराएँ – भारत में ग्रहण के समय अनेक धार्मिक नियम माने जाते हैं। उपवास ग्रहण से पहले उपवास रखा जाता है, ताकि शरीर हल्का और शुद्ध बना रहे।मंत्र-जप इस समय किया गया जप सामान्य समय की तुलना में कई गुना फलदायी माना गया है। स्नान व दान : ग्रहण के पश्चात स्नान करके दान करने का विशेष महत्व बताया गया है।गर्भवती स्त्रियों के लिए सावधानी : प्राचीन परंपरा में उन्हें ग्रहणकाल में बाहर न जाने और तेज वस्त्र-उपकरण न रखने की सलाह दी जाती है। धार्मिक दृष्टि से यह समय आत्मशुद्धि और पुण्य अर्जन का अवसर माना गया है।
ग्रहण और मानव की शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव –
वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि चंद्रमा का प्रभाव समुद्र की ज्वार – भाटाओं पर पड़ता है। मानव शरीर में लगभग 70त्न जल होने के कारण चंद्रमा का प्रभाव हमारे शरीर पर भी होता है। ग्रहण के समय पाचन क्रिया मंद पड़ सकती है, इसलिए भारी भोजन से बचना उचित है। रक्तचाप और नींद के चक्र पर हल्का प्रभाव देखा गया है। आयुर्वेद मानता है कि ग्रहण काल में वात और कफ दोष बढ़ सकते हैं। योग दृष्टि से यह समय शरीर को शुद्ध करने और हल्का रखने का है।
चंद्रमा का मन पर प्रभाव और भावनात्मक परिवर्तन –
चंद्रमा को मन का स्वामी कहा गया है। पूर्णिमा के समय मन में उत्तेजना और उत्साह बढ़ता है। अमावस्या में मन अंतर्मुखी और शांत होता है। परंतु ग्रहण के समय मन में विचित्र अस्थिरता और बेचैनी हो सकती है। आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है कि चंद्रमा के चक्र मानव की नींद, मूड और भावनाओं को प्रभावित करते हैं। क्चद्यशशस्र रूशशठ्ठ के दौरान व्यक्ति को – पुराने संस्कार, भय या स्मृतियाँ उभर सकती हैं। अवसाद या बेचैनी की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। लेकिन यदि व्यक्ति योग और ध्यान करे, तो यही ऊर्जा उसे आत्मबोध की ओर ले जा सकती है।
अध्यात्म व साधना में ग्रहण का विशेष महत्व –
ग्रहण को साधना का पर्व माना गया है। संत-महात्माओं का अनुभव है कि इस समय किया गया ध्यान सामान्य समय की अपेक्षा कई गुना फलदायी होता है। मंत्र-जप : विशेषकर गायत्री मंत्र, महा मृत्युंजय मंत्र और ? नम: शिवाय का जप अत्यधिक प्रभावी होता है। ध्यान : मन स्वत: गहराई में उतर जाता है। साधक के लिए अवसर : अवचेतन की गहराइयों में जाकर आत्मशुद्धि करना। यह समय अंतर्यात्रा और आत्मबोध का द्वार खोल देता है।
योगाभ्यास और ग्रहण :
विशेष अनुशासन – योग परंपरा में ग्रहणकाल में कुछ विशेष अनुशासन बताए गए हैं – आसन अभ्यास कम से कम करना और केवल हल्के आसन करना।प्राणायाम व ध्यान पर अधिक ध्यान देना। मौन साधना में रहना।इस समय भोजन न करना श्रेष्ठ है। योगी इस काल को अमूल्य साधना का अवसर मानते हैं।
ग्रहण और सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताएँ –
भारत में ग्रहण केवल खगोल घटना नहीं, बल्कि एक सामाजिक – धार्मिक पर्व है। लोग एकत्र होकर मंत्र-जप करते हैं। मंदिरों के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और ग्रहण पश्चात शुद्धिकरण किया जाता है। गाँवों और कस्बों में यह सामूहिक चेतना का रूप ले लेता है। लोक मान्यताओं में ग्रहण को शुभ–अशुभ घटनाओं से जोड़ा जाता है। यद्यपि वैज्ञानिक दृष्टि अलग है, फिर भी यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
ग्रहण की ऊर्जा और चेतना का शुद्धिकरण – ग्रहण को नकारात्मक ऊर्जा का समय माना जाता है, परंतु वास्तव में यह समय शुद्धिकरण का अवसर है। बाहर का अंधकार भीतर के अंधकार की ओर संकेत करता है। जब हम भीतर की नकारात्मकता को पहचानकर साधना से रूपांतरित करते हैं, तो चेतना शुद्ध होती है। यह काल हमें अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा की प्रेरणा देता है।
वर्तमान वैज्ञानिक दृष्टिकोण : मिथक और वास्तविकता –
विज्ञान चंद्र ग्रहण को केवल खगोलीय घटना मानता है। इसमें कोई अलौकिक शक्ति नहीं होती। गर्भवती स्त्रियों पर प्रभाव वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है। भोजन न करने की परंपरा को पाचन और स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित ठहराया जा सकता है। इस प्रकार, विज्ञान और परंपरा दोनों की दृष्टि से ग्रहण का महत्व अलग-अलग है, परंतु दोनों मिलकर हमें जीवन की गहराई समझने का अवसर देते हैं।
चंद्र ग्रहण और पर्यावरणीय प्रभाव –
कुछ शोध बताते हैं कि ग्रहण का प्रत्यक्ष प्रभाव पर्यावरण पर नहीं होता, परंतु – पशु-पक्षियों का व्यवहार बदल जाता है। पौधों की जैविक घड़ी प्रभावित होती है। समुद्री ज्वार-भाटाओं में हल्का परिवर्तन आ सकता है। ये सभी बातें प्रकृति और जीवन की गहरी एकता को दर्शाती हैं।
ग्रहण का समग्र संदेश – कुल चंद्र ग्रहण, विशेषकर क्चद्यशशस्र रूशशठ्ठ, केवल एक खगोलीय घटना नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि – चंद्रमा मन का दर्पण है, और ग्रहण उस पर छाए अंधकार को दिखाता है। यह समय हमें अपने भीतर के अंधकार, वासनाओं और भय को पहचानने का अवसर देता है।योग और साधना के माध्यम से हम इस अंधकार को प्रकाश में बदल सकते हैं। अत: कुल चंद्र ग्रहण का संदेश है – आत्मचिंतन करो। साधना करो। भीतर के अंधकार को पहचानो और उसे रूपांतरित कर प्रकाश की ओर बढ़ो। यही योग, अध्यात्म और धर्म का सार है।
