सेंट्रल इंडिया में पहली बार लगाया
दैनिक सांध्य प्रकाश भोपाल। सेंट्रल इंडिया में पहली बार दुनिया का सबसे छोटा पेसमेकर भोपाल में लगाया गया है। कैप्सूल की तरह दिखने वाला यह पेसमेकर निजी अस्पताल में 65 वर्षीय मरीज के दिल में नसों के रास्ते ट्यूब डालकर प्रत्यारोपित किया गया। इससे मरीज की धड़कनें इतनी कम हो गई थीं कि दिमाग तक खून पहुंचने में अड़चन आ रही थी। वो बार-बार बेहोश हो रहा था। पेसमेकर लगाने के बाद मरीज स्वस्थ है। प्रोसीजर करने वाले डॉ. किसलय श्रीवास्तव ने बताया कि एक मरीज के दिल में दुनिया का सबसे छोटा और मॉडर्न पेसमेकर माइक्रा वीआर 2 लगाया गया है। यह आकार में बेहद छोटा है और इसे सीधे दिल के भीतर प्रत्यारोपित किया जाता है। इसमें कोई वायर (लीड्स) नहीं होता और न ही यह त्वचा के नीचे दिखाई देता है।
ज्यादा सुरक्षा और आराम मिलता है
इससे मरीज को परंपरागत पेसमेकर की तुलना में ज्यादा सुरक्षा और आराम मिलता है। इससे पहले 2023 में ऐसा ही एक पेसमेकर रांची के अस्पताल में लगाया गया था। इस पेजमेकर की कीमत 12 से 15 लाख रुपए है। इससे पहले बड़ा पेसमेकर लगाया जाता था, जो था तो सस्ता लेकिन उसकी लाइफ इससे कम रहती है। बैटरी भी बदलनी पड़ती है। इस पेसमेकर की जीवन अवधि 15 साल या उससे अधिक है। यह उन मरीजों के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प है, जिनमें परंपरागत सबक्यूटेनियस पेसमेकर लगाने से संक्रमण या अन्य जटिलताओं का खतरा अधिक होता है। पारंपरिक पेसमेकर सर्जरी के मुकाबले इसमें रिकवरी का समय बेहद कम होता है। मरीज जल्दी सामान्य जीवन में लौट सकते हैं। यह पूरी तरह से वायरलेस है और इसे कैथेटर तकनीक से सीधे दिल में फिट किया जाता है। इसमें कोई बाहरी चीरा नहीं लगता। डिवाइस बाहर से दिखाई नहीं देती है। यही वजह है कि यह तकनीक मरीजों के लिए ज्यादा सुरक्षित और सुविधाजनक मानी जा रही है।
ऐसे मरीजों के लिए यह तकनीक फायदेमंद
बुजुर्ग मरीजों में पेसमेकर की देखभाल करना कठिन होता है। कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों में पेसमेकर साइट पर संक्रमण का डर रहता है। युवा मरीजों के लिए जहां कॉस्मेटिक कारणों से वे पेसमेकर को त्वचा के नीचे दिखाना नहीं चाहते। ऐसे केसेज में माइक्रा वीआर 2 पेसमेकर प्रत्यारोपित किया जाता है।
पारंपरिक पेसमेकर का तार खराब हो जाता है
पारंपरिक पेसमेकर को त्वचा के नीचे लगाया जाता है और इसे दिल से जोड़ने के लिए तार (लीड्स) का इस्तेमाल होता है। समय के साथ ये तार खराब हो सकते हैं, टूट सकते हैं या संक्रमण फैला सकते हैं। कई बार पेसमेकर की बैटरी बदलने या तार को रिप्लेस करने के लिए दोबारा बड़ी सर्जरी करनी पड़ती है।
